हरियाणा के बरवाला स्थित सतलोक आश्रम संचालक संत रामपाल के खिलाफ चल रहे दो केसों में कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए बरी कर दिया है। उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर नंबर 426 और 427 पर अदालती कार्यवाही हुई। रामपाल हिसार सेंट्रल जेल नंबर-1 में मौजूद थे। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट की कार्यवाही हुई। इस फैसले के मद्देनजर हिसार में धारा 144 लगाई गई थी। बीते बुधवार को रामपाल के खिलाफ दर्ज एफआईआर नंबर 201, 426, 427 और 443 के तहत पेशी हुई थी।
जानकारी के मुताबिक, रामपाल पर एफआईआर नंबर 426 में सरकारी कार्य में बाधा डालने और 427 में आश्रम में जबरन लोगों को बंधक बनाने का केस दर्ज है। एफआईआर नंबर 426 आईपीसी की धारा 323 (1 साल कैद), धारा 353 (3 साल कैद), धारा 186 (3 साल कैद) और धारा 426 (3 माह कैद) के तहत दर्ज है। वहीं, एफआईआर नंबर 427 धारा 147 (1 साल कैद), धारा 149 (1 साल कैद), धारा 188 (1 साल कैद) और धारा 342 (1 साल कैद) के तहत दर्ज है। इन दोनों मामलों में प्रीतम सिंह, राजेंद्र, रामफल, वीरेंद्र, पुरुषोत्तम, बलजीत, राजकपूर ढाका, राजकपूर और राजेंद्र को भी आरोपी बनाया गया है।
बता दें है कि कबीर पंथी विचारधारा के समर्थक संत रामपाल दास देशद्रोह के एक मामले में इन दिनों हिसार जेल में बंद हैं। हिसार के बरवाला में तीन साल पहले हुए विवाद के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। इससे पहले साल 2006 में भी रामपाल पर हत्या का मामला दर्ज हुआ था। रामपाल स्वामी रामदेवानंद महाराज के शिष्य हैं।
संत रामपाल दास का जन्म हरियाणा के सोनीपत के गोहाना तहसील के धनाना गांव में हुआ था। पढ़ाई पूरी करने के बाद रामपाल को हरियाणा सरकार के सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की नौकरी मिल गई। इसी दौरान इनकी मुलाकात स्वामी रामदेवानंद महाराज से हुई थी। रामपाल उनके शिष्य बन गए और कबीर पंथ को मानने लगे।
21 मई 1995 को रामपाल ने 18 साल की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और सत्संग करने लगे। उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती चली गई. कमला देवी नाम की एक महिला ने करोंथा गांव में बाबा रामपाल दास महाराज को आश्रम के लिए जमीन दे दी। 1999 में बंदी छोड़ ट्रस्ट की मदद से संत रामपाल ने सतलोक आश्रम की नींव रखी थी।
2006 में स्वामी दयानंद की लिखी एक किताब पर संत रामपाल ने एक टिप्पणी की। आर्यसमाज को ये टिप्पणी बेहद नागवार गुजरी और दोनों के समर्थकों के बीच हिंसक झड़प हुई। घटना में एक शख्स की मौत भी हो गई. इसके बाद एसडीएम ने 13 जुलाई 2006 को आश्रम को कब्जे में ले लिया। रामपाल और उनके 24 समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया गया।
2009 में संत रामपाल को आश्रम वापस मिल गया। उनके खिलाफ आर्य समाज के लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। 12 मई 2013 को नाराज आर्य समाजियों और संत रामपाल के समर्थकों में एक बार फिर झड़प हुई। इस हिंसक झड़प में तीन लोगों की मौत हो गई, करीब 100 लोग घायल हो गए।
5 नवंबर को पंजाब-हरियाणा कोर्ट ने संत रामपाल के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया। 10 नंवबर को संत रामपाल को कोर्ट में पेश होना था, लेकिन संत के समर्थकों ने रामपाल को अस्वस्थ बताकर गिरफ्तारी का आदेश मानने से ही इनकार कर दिया। संत रामपाल कोर्ट में पेश नहीं हुए। हाई कोर्ट ने सरकार और प्रशासन को फटकार लगाई थी।