बेटे को बना दिया सूबेदार, लेकिन बाप ने नहीं छोड़ा भूजा बेचना

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बहराइच। ‘खुद पुकारेगी मंज़िल तो ठहर जाऊंगा, वरना खुद्दार मुसाफिर हूं यूं ही गुज़र जाऊंगा’। ये पंक्तियां जगलाल गुप्ता पर सटीक बैठती हैं। 40 साल पहले उन्होंने भड़भूजे का काम शुरू किया था, आज उनका बेटा सेना में नायब सूबेदार है। बेटे ने कई बार पिता को यह काम छोड़ने को कहा लेकिन वे आज भी इसी काम को ही करते हैं।

करीब 40 साल पहले सुखनदिया गांव के जगलाल ने डीएम तिराहे पर भड़भूजे का काम शुरू किया था। यहां पर आने वाले लोग मक्के के लावा को बेहद पसंद करते थे। इसलिए जगलाल की आमदनी अच्छी हो जाती थी और परिवार का भरण पोषण भी बेहतर तरीके से होना लगा और कुछ पैसे बच भी जाते थे।

इस बीच जगलाल के परिवार का दायरा बढ़ गया। चार बेटे व तीन बेटियों से भरे पूरे परिवार की जरूरतें भी पूरी होने लगीं। खुद न पढ़ न पाने की कचोहट जगलाल को परेशान करती थी, इसलिए उन्होंने बच्चों को खूब पढ़ाया और सदैव आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।

नतीजा कारगिल युद्ध से एक साल पहले उनका बड़ा बेटा कैलाश नाथ भारतीय सेना में भर्ती हो गया। परिवार वालों को लगा कि पिता जगलाल भड़भूजे का काम भी छोड़ देंगे। बेटे को नौकरी मिलने से परिवार की तंगहाली के दिन खुशहाली में जरूर तब्दील हो गए, लेकिन जगलाल ने भड़भूजे का काम नहीं छोड़ा।

वर्तमान में कैलाश नायब सूबेदार है। उसकी झांसी में तैनात हैं। कैलाश जब भी छुट्टियों पर घर आता है तो पिता को भड़भूजे का काम छोड़ने की जिद करता है, लेकिन जगलाल आज भी अपनी जिद पर कायम हैं।

अपने बेटे पर है नाज
जगलाल को अपने बेटे कैलाश पर नाज़ है। वे कहते हैं कि सेना में नौकरी मिले उस कम दिन हुआ था, लेकिन उसने कारगिल युद्ध में योगदान दिया। अब तक वह सेना के कई ऑपरेशन में शामिल होकर अपने जज्बे को साबित कर चुका है। छोटे बेटे मनोज व रवि को भी सेना में भेजूंगा।

भड़भूजे के काम से की बेटी-बेटियों की शादी
जगलाल कहते हैं कि गुप्ता होने के कारण (भार) भड़भूजा हमारे आराध्य देव हैं। इनकी आराधना से ही तीन बेटियों व दो बेटों की शादी की है। इन्ही के आशीर्वाद से ही आज बेटा भारतीय सेना में नायब सूबेदार है। बेटा मनोज व रवि को पढ़ा लिखाकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करूंगा।

चार-पांच सौ रुपये हो जाती आमदनी
जगलाल कहते हैं कि प्रतिदिन भड़भूजे के काम से चार-पांच सौ रुपये की आमदनी हो जाती है। जिससे जीवन अच्छे से बीत रहा है। 40 साल के इतिहास में कई बार पटरी दुकानदारों को उजड़ा गया, लेकिन मेरी दुकान को आज तक नहीं उजाड़ा गया। उन्होंने कहा कि मैं मेहनत करना नहीं छोड़ सकता। जिस दिन मैं कर्म करना बंद कर दूंगा, उसी दिन आंख बंद हो जाएगी।

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