कैसे भाजपा से दूर होते जा रहे हैं दलित और पिछड़े साथी, जानिए

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नई दिल्ली : ‘मेरे दलित भाइयों पर वार करना बंद कीजिए, अगर वार करना है तो मुझ पर हमला कीजिए’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह भाषण आपको याद है न. समय-समय पर मोदी से लेकर पूरी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अपना दलित प्रेम दिखाती रही है. लेकिन, एससी-एसटी एक्ट में बदलाव के बाद सवर्णों के निशाने पर आई मोदी सरकार कई दलित नेताओं नेताओं की नाराजगी झेल रही है. ऐन लोकसभा चुनावों से पहले बहराइच से बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले ने पार्टी से इस्तीफा दिया है. खास बात है कि उन्होंने बीजेपी से परित्याग का निर्णय संविधान निर्माता भीमराव आंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर लिया. सावित्री बाई फुले अकेली दलित नेता नहीं हैं, जो मोदी सरकार से खफा हैं. ऐसे दर्जनों दलित नेता हैं, जो गाहे-बगाहे अपने शीर्ष नेतृत्व को आंखें दिखाते रहते हैं.

रामदास आठवले

केंद्रीय मंत्री और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष रामदास अठावले ने अपने एक बयान से बीजेपी में बेचैनी बढ़ा दी. अठावले ने कहा था, ‘कांग्रेस के नसीम खान बोल रहे हैं कि तुम हमारे साथ आ जाओ. मैं 10-15 साल कांग्रेस में रहा, इधर भी मुझे 15-20 साल रहना होगा.’ उन्होंने कहा कि जब तक बीजेपी सरकार है तब तक मैं यहां रहूंगा. अठावले ने कहा, ‘जब मैं अंदाजा लगा लूंगा कि हवा किस दिशा में है, तब मैं कोई निर्णय लूंगा’. अठावले अपनी पार्टी के इकलौते सांसद हैं.

उदित राज

इस लिस्ट में सबसे पहला नाम उदित राज का है. इंडियन जस्टिस पार्टी के संस्थापक रहे उदित राज 2014 के आम चुनाव में केसरियामय हुए थे और मोदी लहर में दिल्ली की उत्तर पश्चिम सीट से सांसद बने. लेकिन पांच साल में कई मुद्दों पर वह सार्वजनिक मंचों से मोदी सरकार का विरोध कर चुके हैं. 80 से 90 फीसदी तक आरक्षण खत्म होने की बात कहते हुए उदित राज ने अपनी ही सरकार पर उनकी बातों को अनसुना करने का आरोप लगाया था. इससे पहले उदित राज बोल चुके हैं कि मोदी सरकार के दलित मंत्री समुदाय के प्रति अपना फर्ज भूल गए हैं. इस वजह से दलित समाज बीजेपी से दूर जा रहा है.

छोटेलाल खरवार

उत्तर प्रदेश के रॉबर्ट्सगंज से बीजेपी सांसद छोटेलाल खरवार भी सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार से अपनी नाराजगी जग जाहिर कर चुके हैं. उन्होंने पीएम मोदी को एक चिट्ठी लिखी थी. इस चिट्ठी में उन्होंने लिखा, ‘वो पिछले तीन साल से चंदौली जिला प्रशासन और वन विभाग में हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. जिले के आला अधिकारी उनका उत्पीड़न कर रहे हैं. मामले में भाजपा सांसद ने दो बार सीएम योगी से मुलाकात की, लेकिन सीएम ने उन्हें डांटकर भगा दिया.’ वह सीएम योगी के अलावा बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय और संगठन मंत्री सुनील बंसल की भी शिकायत कर चुके हैं. हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी ने खरवार की शिकायत पर कार्रवाई का आश्वासन दिया था. इसके बाद से वह शांत हो गए. लेकिन कभी-कभी दलितों का मुद्दा उठाते रहते हैं. खरवार 2014 चुनाव से पहले सपा छोड़कर बीजेपी में आए थे.

अशोक दोहरे

छोटेलाल खरवार की ही तरह यूपी के इटावा से सांसद अशोक दोहरे भी सीएम योगी समेत बीजेपी नेताओं के खिलाफ अपना गुस्सा निकाल चुके हैं. बीते दिनों उन्होंने पीएम मोदी को पत्र लिखकर कहा, ‘2 अप्रैल को ‘भारत बंद’ के बाद एससी/एसटी वर्ग के लोगों को उत्तर प्रदेश सहित दूसरे राज्यों में सरकारें और स्थानीय पुलिस झूठे मुकदमे में फंसा रही है. उन पर अत्याचार हो रहा है.’ उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस निर्दोष लोगों को जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए घरों से निकाल कर मारपीट कर रही है. इससे इन वर्गों में गुस्सा और असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है. बसपा सरकार में मंत्री रहे अशोक दोहरे भी 2013 में बीजेपी में आए थे और 2014 का चुनाव जीते.

यशवंत सिंह

यूपी के नगीना से बीजेपी सांसद यशवंत सिंह भी दलितों को लेकर मोदी सरकार से नाराजगी जता चुके हैं. जाटव समाज से आने वाले यशवंत सिंह ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया था कि उनकी ओर से 4 साल में 30 करोड़ की आबादी वाले दलित समाज के लिए प्रत्यक्ष रूप से कुछ भी नहीं किया गया. बैकलॉग पूरा करना, प्रमोशन में आरक्षण बिल पास करना, प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण दिलाना आदि मांगें नहीं पूरी की गईं. उन्होंने पीएम मोदी को खत लिखकर कहा था कि बीजेपी के दलित सांसद प्रताड़ना के शिकार बन रहे हैं. जनता को कई मुद्दों पर जवाब नहीं दे पा रहे हैं. अशोक दोहरे की ही तरह यशवंत सिंह भी बसपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं और 2014 में ही भाजपा का दामन थामकर सांसद बने हैं.

बीजेपी के लिए यह नेता इसलिए अहम हैं, क्योंकि देश की सुरक्षित 80 सीटों में 40 पर (बहराइच को लेकर) पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं. 80 सीट वाले उत्तर प्रदेश में सभी 17 सुरक्षित सीटों पर बीजेपी ने 2014 में शानदार जीत दर्ज की थी. इनमें से सावित्री बाई फुले ने पार्टी से नाता तोड़ लिया. 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में दलितों की आबादी करीब 17 फीसदी है. उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के चुनाव में दलित मतदाताओं की काफी अहम भूमिका रहती है. दलितों की सियासी ताकत को देखते हुए बीजेपी उन्हें पाले में लाने की कवायद में लगी रहती है. लेकिन बीजेपी के दलित नेताओं की नाराजगी उसके लिए सिर दर्द बन रही है.

दलित ही नहीं पिछड़े नेता भी नाराज

अकेले दलित नहीं बीजेपी के लिए लोकसभा चुनाव से पिछड़े नेताओं ने भी मुश्किलें बढ़ा दी हैं. बिहार की क्षेत्रीय पार्टी राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (रालोसपा), एनडीए से अलग हो सकती है.

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