16 मई को हर साल स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा डेंगू दिवस मनाया जाता है। किसी भी दिन को मानाने के पीछे का कारण उस बीमारी को लेकर लोगों में जागरूकता पैदा करना होता है। भारत में डेंगू का एक समय आता है, जब इस बीमारी का खतरा रहता है। यह बीमारी मॉनसून के समय आती है और इसी समय सबसे ज्यादा लोग इस बीमारी से पीड़ित होते हैं। मॉनसून के साथ डेंगू के मच्छरों के पनपने का मौसम भी शुरू होता है। सरकार इस बीमारी को लेकर अब तक काफी जागरूकता फैला चुकी है।
कब पनपते हैं डेंगू के मच्छर?
डेंगू के मच्छर अधिकतर जुलाई से अक्टूबर के बीच ही पनपते हैं। मानसून के समय पानी इकठ्ठा होने से डेंगू के मच्छर पनपने का अधिक खतरा रहता है। इसलिए गर्मियों की शुरुआत के साथ ही और लोगों के घरों में कूलर लगने के कुछ समय बाद ही क्वालिटी चेक वाले आपके घरों में चेकिंग शुरू कर देते हैं। सरकार हर साल ऐसा करती है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है की यह बीमारी अभी भी उतनी ही घातक है और इसे लेकर पूरी जानकारी होना बेहद जरूरी है।
डेंगू का मच्छर आम मच्छर से होता है अलग
डेंगू के मच्छर का नाम मजा एडीज बताया गया है। इस मच्छर के काटने से डेंगू की बीमारी होती है। यह आम मच्छरों से अलग होता है। बता दें, यह मच्छर अधिकतर रोशनी में काटते हैं। कई रिपोर्ट्स में यह भी बताया गया है की यह मच्छर सुबह के वक्त काटते हैं। सुबह और दिन के वक्त या जब रोशनी हो तो इसका अधिक ध्यान रखने की जरूरत होती है। माजा एडीज ज्यादा ऊंचाई तक उड़ने में सक्षम नहीं होता और यही कारण है की यह अधिकतर घुटनो के नीचे काटता है। यह एक भ्रम है की डेंगू के मच्छर सिर्फ गंदे पानी में पनपते हैं। साफ-सुथरे इलाकों में और साफ-सुथरे पानी में यह मच्छर पनपते हैं तो सभी को इसका ध्यान रखने की जरूरत है।
कैसे चलेगा पता?
माजा एडीज यानी अगर डेंगू के मच्छर ने आपको काट लिया है तो इसके कुछ दिनों बाद आपको लक्षण दिखने शुरू होंगे। इसके काटने के 3 से 5 दिनों के बाद बुखार आदि के लक्षण आने लगते हैं।
कैसे करें बचाव?
साफ या गन्दा किसी भी तरह के पानी को किसी बर्तन में जमा कर के न रखें।
कूलर के पानी को भी रोजाना बदलें और हो सके तो उसमें थोड़ा सा मिटटी का तेल डाल दें।
पानी की टंकी को ढक्कन से ढक कर रखें।
खिड़कियों को जाली या शीशे से बंद कर के रखें और दरवाजे भी बंद कर के रखें ताकि मच्छर घर में न आ सकें।
मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी या स्प्रे आदि का प्रयोग करें।
एक्वेरियम, फूलदान आदि में हर हफ्ते पानी बदलें।