द हेग। पकिस्तान की अदालत द्वारा भारत के कथित जासूस कुलभूषण जाधव को मृत्युदंड देने के खिलाफ भारत की याचिका पर सुनवाई करते हुए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने सोमवार को जाधव द्वारा अपराध स्वीकार करने वाला वीडियो देखने के पाकिस्तान के अनुरोध को ठुकरा दिया। सुनवाई के दौरान जब दलील पेश करने की पाकिस्तान की बारी आई तो पाकिस्तान ने जाधव द्वारा अपराध स्वीकार करने से संबंधित वीडियो चलाने की इजाजत मांगी, लेकिन आईसीजे ने पाकिस्तान की अर्जी स्वीकार नहीं की।
पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) से कहा कि अपने नागरिक कुलभूषण जाधव की मौत की सजा पर भारत की अर्जी ‘गैर जरूरी और गलत तरीके से की गयी व्याख्या’ वाली है। पाकिस्तान ने कहा है कि भारत इस न्यायालय का इस्तेमाल राजनीतिक रंगमंच के तौर पर कर रहा है। भारत की दलील के जवाब में पाकिस्तान ने अपनी दलील शुरू करते हुए यह कहा। इससे पहले दिन में भारत ने दलील दी।
तीन आधार पर अर्जी खारिज करने को कहा-
पाकिस्तान ने आईसीजे से कहा कि जाधव पर भारत की अर्जी तीन आधार पर अवश्य ही खारिज की जानी चाहिए। वे तीन आधार हैं – कोई एजेंसी नहीं है, जो राहत मांगी गई है वह स्पष्ट रूप से अनुपलब्ध है और अधिकारक्षेत्र सीमित है। इसने कहा कि जाधव पर पाकिस्तान के आरोपों पर भारत की चुप्पी है और उसका कोई जवाब नहीं मिला है। पाकि ने कहा कि वियना समझौते के प्रावधान आतंकवादी गतिविधियों में शामिल किसी जासूस पर लागू नहीं होते।
18 वर्षों बाद ICJ में कानूनी लड़ाई
उल्लेखनीय है कि आईसीजे ने भारत की एक याचिका पर पिछले सप्ताह जाधव की फांसी पर रोक लगा दी थी। पाकिस्तान के साथ किसी मुद्दे को लेकर भारत 18 वर्षों बाद अंतर्राष्ट्रीय अदालत पहुंचा है। एक साल पहले गिरफ्तार किए गए भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी को पाकिस्तान की एक सैन्य अदालत ने पिछले महीने मौत की सजा सुनाई थी। भारत ने कहा है कि जाधव का अपहरण किया गया और उनपर बेबुनियाद आरोप लगाए गए।
भारत ने जाधव को राजनयिक पहुंच प्रदान करने के लिए पाकिस्तान से 16 बार अनुरोध किया, लेकिन हर बार इस्लामाबाद ने इनकार कर दिया। भारत को यह तक पता नहीं है कि उन्हें पाकिस्तान में किस जेल में रखा गया है।
भारत ने सजा रद्द करने की मांग की
भारत ने सोमवार को अंतर्राष्ट्रीय अदालत (आईसीजे) से मांग की कि भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव की मौत की सजा को पाकिस्तान रद्द करे और वह इस पर गौर करे कि उन्हें फांसी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि उनके मामले की सुनवाई विएना संधि का उल्लंघन करते हुए ‘हास्यास्पद’ तरीके से की गई है।
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